Monday, 3 August 2009

shab!!


शब!
रात!!
हाँ आज फिर से आई है.
अक्सर ही तो आती रहती है,
तुम्हारी ज़िन्दगी में .
कितनी आयी...
कितनी और आयेंगी..
खैर छोडो..
अपनी बात करते हैं..
कुछ अनोखा सा नहीं है मुझमे..
मैं भी उन सब की तरह हूँ.
जिनके चले जाने पर,
तुम उसे मनहूसियत बताते हो..
अँधेरे और असफलता का शबब कहते हो.
पर क्या कभी महसूस किया है तुमने?
ये वही रात है,
जो पल पल जल के भी,
सिर्फ तुम्हारे बारे में सोचती है,
सिर्फ तुम्हारे लिए....
तुम्हारी थकावट...
तुम्हारे गम,
तुम्हारी परेशानियों को,
अपने आगोश में ले लेती है,
ये वही हैं,
जो तुम्हारे अंदर के बच्चे को,
एक नया सा रूप देती है,
तुम्हे दुलारती है..
पुचकारती है.
अपने अँधेरे रूपी आँचल को फैला कर,
तुम्हे शीतल हवाओ की थपकिया देते हुए,
तुम्हे दूर कर देती है,
इस सांसारिक जीवन से...
एक माँ की तरह.. .....
देखो!
आज मैं फिर से आयी हूँ.
एक नए रूप में.
तुम पर अपना सर्वस्व निछावर करने .
पर...
पर कब तक रहोगे तुम मेरे पास?
कब तक??
शायद कल सुबह तक!
हाँ रह भी कैसे सकते हो...
तुम्हे फिर से बड़ा जो होना है.
और मेरा वजूद ही क्या रहा जायेगा..
तुम्हे सब कुछ देते देते..
मैं भी तो बढ़ रही हूँ...
अपनी पूर्णता की तरफ,
पूर्णता के बाद..
होता है विनाश!
मेरा एक एक कतरा.
मिट जायेगा तुम्हारे बड़े होने के साथ.
सुबह की रौशनी,
जो तुम्हारे लिए नयी खुशिया लाएगी...
मेरे लिए..
तुमसे मेरा विछोह..
नामोनिशा तक ना रहेगा मेरा.
और तुम..
फिर से उसी मायाजाल में खो जाओगे.
दिन भर भागते रहोगे.
अपने लक्ष्य के पीछे.
और शाम होते ही,
फिर से एक नयी रात के आगोश में खो जाओगे.
मैं..
मेरा क्या होगा??
मेरा तो वजूद ही न रहेगा..
पर क्या मैं याद रहूंगी तुमको???
क्या एक बार भी मेरे प्यार के बारे में सोचोगे तुम??
या बस,यु हीं!!!

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