Wednesday, 19 August 2009

कुछ लाइने....,जो बस लिख दी! युहीं!!!

खामोशी यूँ छा जाती है,
तुम्हारे रूठने के बाद।
की धड़कने भी अपनी,
महसूस नही होती॥




पहले तो हम,
आग से खेला करते थे,,
पर जलन क्या होती है,
अब पता चला।।




ख्याल इस कदर है,
हमें उस नाचीज़ का।
की नाम तक याद नही,
अब हर चीज़ का॥.....to be continued.




उन्हें यूँ देखा,
तो बस देखता चला गया।
था तो भीड़ में,
पर तन्हाईयों में खोता चला गया॥
कुछ कहना चाहा,
पर कह न पाया....
आंखों में गहराई थी इतनी,
की बस डूबता चला गया॥
महफ़िल कुछ खामोश सी लग रही थी,
हम उन्हें और वो हमे देख रही थी।
जुबां थी खामोश,
पर निगाहें सही वक्त ढूंढ रही थी.....

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