Saturday, 17 October 2009

एक मैं था
जो कुछ समझ न सका
एक वो थे
जो कुछ समझा न सके
एक जमाना था
जो हमारी समझदारी की दाद देता रहा....
ज़माने में दोनों की
बहुत बातें होती थी
पर रहते थे दोनों खामोश
जब भी मुलाकातें होती थी...
दोनों के दरम्यान
बस दो क़दमों का फासला था
बढ़ाएगा पहला कदम वो
सोचकर दूसरा नहीं बढ़ा....

Friday, 16 October 2009

बदहाली

अब है टूटा सा दिल, ख़ुद से बेजार सा,
इस हवेली में लगता था कभी दरबार सा।